Chủ Nhật, 25 tháng 1, 2015

मन की तृप्ति

मन की तृप्ति और शांति के लिए पता नहीं हूँ क्या क्या करते है पर हमे कभी  नहीं यहाँ पर तृप्ति प्रपात नहीं होती है इसका कारन क्या है  हमे पता  नहीं है सुख के पीछे  भागते हुए पता नहीं कितने जनम हो गए है पर सुख का एक लेश मात्र भी नहीं एक मनुष्य के हाथ में आया है। बस हम यहाँ पर पदार्थ वाद क ई दौड़ में इतना उलज कर रह गए है की जितना लोभ के पीछे भगा उतना ही दिल का चैन खो  गया है। गुरु नानक ने यही कहा है की भूख्या भूख न उतरे जे बना पुरिअ भार के चाहे तुम पूरी दुनिया की दौलत इकठी क्यों न कर लो तब भी दुःख ने हमारा पीछा नहीं छोड़ देना है। असल में जिस सुख को हम  बहार की दुनिया में खोज रहे है वो असल में कही पर बहार नहीं बल्कि हमारे ही भीतर हमारा शुद्ध चेतन पूर्ण टूर से सुख सरूप है और कभी दुःख उसमे होता ही नहीं है बल्कि दुःख हमारे ही अंदर की सोच से जनम लेता है चाहे मनुष्य कितना भी दुसरे को धोखा देकर सोचता रहे की यहाँ पर  धन इकठा करके में सुख हासिल कर लूंगा पर असल में सचयी इससे उलट  होती है ,जब  जब धन का अम्बर लगता है इसका जीवन उतना ही नरक में चला जाता है ,,असल में हम यह नहीं कह रहे  है की धन   वास्तु है जिससे आपको नुक्सान हो सकता है जा फिर यह कोई ऐसी वास्तु है जिससे कोई लाभ ही नहीं है पर धन की सोच में धोखा करना और लालच वास होकर गैर कानूनी काम कर देना यह एक बहुत बड़ा अप्राद है ,भारत एक गरीब देश है यह सिर्फ एक भरम है सच तो  यह है की हमारा देश असल में गरीब बना दिया है कुश चाँद भरष्ट लोगो ने वार्ना अज्ज भी  देश एक अमीर देश में शुमार होता है। कैसे हमारी जिनगी सही तरीके से चल पड़े और हम यहाँ पर सभी सुखी हो यह तब ही सम्भव है जब  हम उस परमेश्वर की कृपा का एहसास करे और लोभ त्याग कर सिर्फ और सिर्फ अपने काम की और धयान दे यही एक सुखी जिनगी जीने का तरीका है। ईमानदारी यहाँ होती है वही पर सारी चीजे  जाती है। क्योकि यहाँ यह चीज है वह पर क ओइ किसी का हक्क नहीं मारता है और सव लोग आपस में एक दुसरे का सहयोग करते है और जिससे गरीबी और अमीरी का फरक मिटता जाता है और देश के रूप में विकसशली बनते जाते है और तभी एक शक्तिशाली देश के रूप में हम उभर उभर सकते है। शक्ति सिर्फ धन ही की नहीं होती है बल्कि चरितर और धरम की भी होती है इसी लिए अज्ज भारत को अपने धरम की और  होगा जिससे एक बार यह फिर से विषब गुरु की उपादि पर आ जाये

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