Thứ Bảy, 17 tháng 1, 2015

जनम और मरण

जब से मनुष्य पैदा हुआ है तबसे इसी खोज में जुटा हुआ  दुनिया में हम क्यों पैदा हुए है और इस दुनिया से अग्गे इसने कहा पर जाना है पर अगर हूँ कुश धार्मिक ग्रंथो की और देखे तो हमे मालूम  की दुनिया में हम  यहाँ  किसके  लिए पैदा हुए है और क्या करने ए है और क्या हमारा लक्ष है और क्यों हम यहाँ पर कर रहे है जे जीव क्या है कहा से आता है और कहा चला जाता है जे सब सवाल भी हमारे दिमाग में  बार घूम रहते है इसी  लिए तो परमात्मा अपना ज्ञान हमे देता रहता है असल में जनम और मरण भी इसी कड़ी का ही एक हिस्सा मात्र ही है क्योकि जनम और मरण हमे यहाँ पर ज्ञान देने के लिए ही तो मिला है ,जबतक जनम और  मरण रहता है तबतक हम ज्ञान की और से उनत होते रहते है और यही इसका मकसद है की हम ज्ञान के रूप से अपने अप्प क ओ उन्नत कर पाये और हमेशा ककए लिए अपनी उसी अवस्था में पुहंच जाये जिस पर हम ए है। यही इस इंसान का एक लखस है पर जब तक हम इस ज्ञान की प राप्ती नहीं कर लेते है तब तक हमे शरीर मिलता ही रहता है और यह कोई  प्रकोप नह  बल्कि उस         बहुत बड़ी कृपा है हम पर की हम सब यहाँ पर  नया ज्ञान हासिल करते जा रहे है इसी   ही तो विकास सम्भव  है इस दुनिया  भी कोई भी ज्ञान है जेह ज्ञान अतर आत्मा का ही एक प्रतीक है सारा का सारा ज्ञान ही अंतर आत्मा से अ रहा है और यही  को ज्ञान  मगर हम अगर  ज्ञान को अग्गे बढ़ाने की  करते रहेंगे तो यह ज्ञान  भी पहंच सकता है।  का हिस्स्सा है जब तक  को जान  इसको रहने  आसरा चाहिय ही और इसको यह असर यहाँ पर सरीर  से ही मिलता है सरीर अब मन का  घर है मगर जब यह अपने निज सरूप को जान लेता है तो इसका भरम दूर हो जाता है और हीर इसको कोई दूसरा सरीर धारण करने की  कोशिश नहीं रहती है यही  ज्ञान सरूप आत्मा है

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