Thứ Năm, 5 tháng 2, 2015

ज्ञान का प्रकाश

अपुने जन का परदा ढाकै ॥
अपने सेवक की सरपर राखै ॥
यदि कोई उसका सेवक बन जाये तो वह अपने सेवक के ज्ञान की कमी को दूर कर देता है । सेवक के भ्रम पर ज्ञान का पर्दा डाल देता है । जहां भ्रम होता है वहाँ ज्ञान का प्रकाश डाल भ्रम को अज्ञानता को दूर करता है ।
उसने अपने सेवक की रक्षा का जिम्मा अपने सर लिया हुआ होता है ।
अपने दास कउ देइ वडाई ॥
अपने सेवक कउ नामु जपाई ॥
अपने दास की बुद्धि को बढ़ा देता है । वह अपने दास के ज्ञान में वृद्धि कर देता है । अपने सेवक को नाम जपाता है । अपने सेवक को शब्द गुरु का ज्ञान दे देता है । सेवक को समझ प्रदान करता है और सेवक समझता जाता है ।
अपने सेवक की आपि पति राखै ॥
ता की गति मिति कोइ न लाखै ॥
अपने सेवक की पत वह स्व्म ही रखता है । उसकी बुद्धि की गति और मन की अवस्था का कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता । कई बातें ऐसी होती है जिसका ज्ञान सेवक को भी नहीं होता क्योंकि यह सब कुछ सेवक के ठाकुर का किया हुआ होता है । सेवक की गति मिति स्व्म उसकी नहीं होती यह गति मिति उसके प्रभ की ही होती है ।
प्रभ के सेवक कउ को न पहूचै ॥
प्रभ के सेवक ऊच ते ऊचे ॥
प्रभ के सेवक का मुकाबला कोई नहीं कर सकता । उसकी ज्ञान चर्चा की अवस्था तक कोई दूसरा पहुँच नही सकता । प्रभ का सेवक ही वहाँ तक पहुँच सकता है ।
जिन्हे पुजारी, संत, ज्ञानवान माना जाये या जो मूर्खों के गुरु, अपने आप को प्रभु कहलवाने वाले हों या किसी को कोई कितना भी ऊँचा क्यों न समझता हो लेकिन प्रभ का सेवक उन सब से ऊँचा होता है ।
जो प्रभि अपनी सेवा लाइआ ॥
नानक सो सेवकु दह दिसि प्रगटाइआ ॥४॥
नानक कह रहे हैं कि जिस सेवक को प्रभ ने स्व्म अपनी सेवा में लगा लिया अर्थात जिसे प्रभ ज्ञान करवा दे, सच का ज्ञान करवा दे वह सेवक दसों दिशाओं में प्रकट हो जाता है ।

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