Thứ Năm, 5 tháng 2, 2015

जप का अर्थ

गउड़ी सुखमनी 135
बारं बार बार प्रभु जपीऐ ॥
पी अम्रितु इहु मनु तनु ध्रपीऐ ॥
प्रभ को बार बार समझना चाहिए । प्रभ को समझने में भूल हो जाना स्वाभाविक है । इसलिए बार बार समझते रहना चाहिए । समझ में भूल होने की वजह से ही इतनी मतें बनी हैं । बड़े बड़े ज्ञानवान लोगों ने भूल करदी और अनगिनत मतें बना दी । सावधान होकर एक मन एक चित होकर ही प्रभ को समझना चाहिए । जाग्रत होकर समझना है । लोगों ने जप का अर्थ ही गलत ले लिया और माला जपना शुरू कर दिया जिसमे प्राप्ति कोई भी नहीं है ।
जो वस्तु हमें चाहिए वह ज्ञानेन्द्रों की पकड़ से परे हैं, मन-बुद्धि की पकड़ से परे है । इसलिए हर पल सावधानी से जपना आवश्यक है ।
बार बार जपकर ही अमृत प्राप्त होता और मन-तन से तृष्णा माया की अग्नि बुझ जाएगी । तृष्णा अमृत पीकर ही बुझती है अन्यथा तृष्णा बुझती ही नहीं है ।
नाम रतनु जिनि गुरमुखि पाइआ ॥
तिसु किछु अवरु नाही द्रिसटाइआ ॥
जिन गुरमुखों ने नाम रत्न पा लिया उन्हे नाम के अतिरिक्त और कुछ दिखाई ही नहीं देता । गुरमुखों को माया दिखाई ही नहीं देती । उन्हे केवल सच दिखाई देता है , झूठ दिखता ही नहीं । माया का झूठ का उन पर कोई असर नहीं होता । उन्हे केवल हरि ही दिखाई देता है और उन्हे हरि की ही इच्छा होती है । ना माया दिखती है न माया की इच्छा होती है ।
नामु धनु नामो रूपु रंगु ॥
नामो सुखु हरि नाम का संगु ॥
गुरमुख का धन केवल नाम-धन है दूसरे धन को वह धन नहीं समझता । उसके लिए रूप और रंग नाम ही होता है । उसका सुख नाम ही है । उसे नाम में सुख मिलता है । गुरमुख की संगति हमेशा नाम के साथ ही होती है । नाम के अतिरिक्त हुक्म के अतिरिक्त उसका संपर्क किसी से नहीं होता । उसे हुक्म ही दिखाई देता है । उसके लिए हुक्म के अलावा और कुछ नहीं है । हुक्म ने ही सब कुछ पैदा किया है हुक्म ही सब कुछ खत्म करेगा । गुरमुख केवल हुक्मनुसार चलते हैं । जब तक पूर्ण ब्रह्म की इच्छा है तब तक यह सृष्टि है । सृष्टी का अंत भी उसी की इच्छा से होगा । सब कुछ हुक्म अनुसार ही है । यह सारा खेल हुक्म का रचा हुआ है और अंत में सब हुक्म में ही समा जाएगा ।
नाम रसि जो जन त्रिपताने ॥
मन तन नामहि नामि समाने ॥
नाम रस से जो तृप्त हो गए अर्थात नाम से जुड़कर जिनकी माया की तृष्णा खत्म हो गयी , माया की इच्छा ही खत्म हो गयी उनका मन तन नाम में ही लीन हो जाता है । वे जीते जी हुक्म में लीन हो चुके होते हैं ।
ऊठत बैठत सोवत नाम ॥
कहु नानक जन कै सद काम ॥६॥
ऐसे जन उठते बैठे सोते हुए भी नाम से जुड़े रहते हैं । जो नाम से जुड़कर सोते हैं वह उठते भी नाम के साथ ही हैं । नानक कह रहे हैं कि वे जन सदा इसी में लगा रहता है । उसका बस यही काम होता है उसका कोई और काम नहीं होता ।

Không có nhận xét nào:

Đăng nhận xét