Thứ Tư, 11 tháng 2, 2015

पत्थर की पूजा एक गुनाह है

क्या हम आज इस दुनिया में कोई भी हम काम नहीं कर रहे है मगर पर असल में यही तो बात है जो  हम को समाज में नहीं अ रही है की आज इस दुनिया को क्या हो गया है इस पर तो यह लग रहा है की  यह तो अचेत है इस पर तो हमे यह भी नहीं पता की पत्थर की पूजा करने वाले लोग आप ही पत्थर का जड़ रूप है इस पर यह भी नहीं पता है की पत्थर की पूजा एक गुनाह है और यह हमें एक  कुए की ऊपर ले कर जाकर ले रहा है ,,,,इस गुनाह की सजा तो इसको मिल रही है पर ह उमे यह भी देखना चाइये की किस  चीज का फाइदा है और नहीं है पर यह तो एक और बात हो गयी किस पर्कार ह उम यह कह सकते है की क्या हम यह बात को कर सकते है मगर इस बात पर गुनाह कर रहे है और मगर इस बात पर कोई भी नहीं कह सकता है पर क  ओइ भी तो य यही नहीं कहा था की इस बात पर तो कोई भी कटाक्ष नहीं कर सकता है पर कभी हमे भी तो यही पता नहीं चलता है की अछि चीज  की जरुरत किस तरह है पर हम  यह तो नहीं बता सकते है की काम की बात किस पर्कार खतम हो गयी है मगर चीज तो वही रही है ,,,,कोई भी मगर इस बात पर तो सवाल उठना हिअ चाइये की एक लगन मगर पर लोभ ही तो डाट है इस पर नहीं बल्कि लोभ ही नाश करने के लिए बना है लोभ तो नाश करता ही है ,पाप और अप्रद में क्या फ्रक है इस पर तो कोई भी नहीं जनता है लोग तो बस पागल हुए चले अ रहे है हम तो यही कह सकते है मन कर रहा है इस पर एक बात बोलने का मगर इस पर एहि तो कह सकते है की जिस पर रहत लोग पर लोग नाम रेहान का कोई लॉकर का नाम है तो नहीं मुसहर तो राज योगी का नाम होकर बस यही तो चीज है किस  पर्कार हम यह नहीं देख सकते की किस तरह एक लोग कोश करकर भी तो अनजान है कोई भी हमे यह नहीं बता सकता है की आज सकते हो ,,,,,क्या सच में हमारा देश एक विकास की रह पर चल रहा है इस में तो कोई शक नहीं है की देश विकास पर है ,,,पर किस तरह कस विकास है यह सब तो न शत ब्रष्ट हो चूका है ,,हवा साडी मिली हो चुकी है ,,,,,,सारी उम्र तो  उसने ही गवा ली है मगर अब कोई देख नहीं रहा है की किस पर्कार तो लोग तो रोकने के बाद रहने के काबिल नहीं था पर हम तो यह देख सकते है की जालिम ने इतना भी नहीं सोचा के लोभ के कारन ही सरे रिश्ते नाते लोभ के पीछे ही भाग रहे हो ,ल,,,कभी तो बात करते करते हम भी थक ज आते है और पूरी बात नहीं कर प आते है मगर इतना तो जानते ही नहीं की बात क इस पर्कार करनी चाइये यह तो वही बात है किस पर्कार एक मेढक ने कहा में कुए में ही ठीक हु मगर इस पर उसने यह नहीं ज आना है कुए के बहार भी तो क इतनी सारी दुनिया घुम रही है जिस पर हमे देखना भी पड़ेगा की किस  पर्कार हमे यह बात हमे देख रहे है की हम इस पर्कार कोई भी संसार को देखने में सफल  नहीं है पर यह भी  तो कहना ठीक नहीं है  की इसमें दोष किस्क्स है यह तो ऐसी बात है किस एक तरफ तो आप कहते हो किस की नाम की बात करो और दूसरी तरफ नाम से ही निगा फेर लो क्या ये सच में सही है नहीं नहीं सच तो वही रहेगा जो आपसमे प्यार से नफरत न फेल कर मेगा रहे

Thứ Ba, 10 tháng 2, 2015

क्या कोईसिद्ध शक्ति का मालिक है

क्या कोईसिद्ध शक्ति का मालिक है ,,ऐसा  ऐसा भरम जाल है जो  हमारे यहाँ देश मेंकईसमय में चलता रहता है ,,,,,आम तो पर योगी ऐसी किसीसिद्धि का दवा अपने  में करते है पर क्या यह सच है की इस पर्कार की कोई सीधी  होती है ,,,,पर हम देखते है की इस पर्कार की कोई भी सीधी किसी भी योगी के पास नहीं होती ,,,,पर वो यह झूठी बात क्यों करते है वो इस लिए इस को करते है क्योकि माया की भूख उनको यह करने पर मजबूर करती है औरऔर इसी पाखंड के नाम पर उन्होंने एक ऐसापाखंडफेला  रखा है की साडी दुनिया में इसी   में सभी को ऐसे ही दिन में कभी भी परमात्मा के नाम से ही हमारा पार उतरा हो  रहा हैक्योकि माया देना तो उसी के हाथ  में है ,,,सब कुश उसी के हाथ में है और एहि एक ऐसी बात है जो हमारे लिए मुक्ति का साधन बनी हुए है
इस चाल आप कैसे सेटअप एक फोटो फ़ोल्डर के रूप में उसकी सामग्री प्रदर्शित करने के लिए किसी भी फ़ोल्डर को दिखाता है। कई मामलों में, आप आपकी छवियाँ/तस्वीरें एक 'मेरे चित्र' (अंतर्गत 'मेरे दस्तावेज़') की तुलना में अलग फ़ोल्डर में सहेजें। इस फ़ोल्डर आप चुनते हैं के बाद से बस किसी भी अन्य सामान्य फ़ोल्डर, इसकी फ़ाइलों की एक सूची के रूप में प्रदर्शित सामग्री की तरह है। आप इसके द्वारा बस राइट-क्लिक करें और का चयन 'दृश्य' अस्थायी परिवर्तन कर सकते हैं >> 'थंबनेल'। लेकिन यदि आप फ़ोल्डर को बदलें जिससे  तुम वापस आने के लिए चाहते हैं, तो फ़ोल्डर ही, साथ ही इसके सभी सबफ़ोल्डर्स, सामग्री तस्वीर थंबनेल के रूप में प्रदर्शित करें। फोटो  पर अप्प इस को फोटो के रूप में बदल सकते है

Thứ Sáu, 6 tháng 2, 2015

Virtual PC 2007 SP1

With Microsoft Virtual PC 2007, you can create and run one or more virtual machines, each with its own operating system, on a single computer. This provides you with the flexibility to use different operating systems on one physical computer.
Save time and money as Virtual PC allows you to maintain the compatibility of legacy and custom applications during migration to new operating systems and increases the efficiency of support, development, and training staffs. Scenarios include the following:
Safety net for OS migration:
Virtual PC provides IT Professionals with a cost-effective safety net for certain employees to run critical legacy applications on an interim basis while IT Pros continue their current migration plan to a new OS. Microsoft operating systems and applications running on VPC virtual machines are fully supported in compliance to the MS product lifecycle guidelines. So Windows XP Pro deployments can continue on schedule, even if faced with unanticipated application compatibility issues, allowing Microsoft customers to take advantage of the ROI and productivity gains of more current operating systems.
 virtual pc is a software that allows you good work

Thứ Năm, 5 tháng 2, 2015

ज्ञान का प्रकाश

अपुने जन का परदा ढाकै ॥
अपने सेवक की सरपर राखै ॥
यदि कोई उसका सेवक बन जाये तो वह अपने सेवक के ज्ञान की कमी को दूर कर देता है । सेवक के भ्रम पर ज्ञान का पर्दा डाल देता है । जहां भ्रम होता है वहाँ ज्ञान का प्रकाश डाल भ्रम को अज्ञानता को दूर करता है ।
उसने अपने सेवक की रक्षा का जिम्मा अपने सर लिया हुआ होता है ।
अपने दास कउ देइ वडाई ॥
अपने सेवक कउ नामु जपाई ॥
अपने दास की बुद्धि को बढ़ा देता है । वह अपने दास के ज्ञान में वृद्धि कर देता है । अपने सेवक को नाम जपाता है । अपने सेवक को शब्द गुरु का ज्ञान दे देता है । सेवक को समझ प्रदान करता है और सेवक समझता जाता है ।
अपने सेवक की आपि पति राखै ॥
ता की गति मिति कोइ न लाखै ॥
अपने सेवक की पत वह स्व्म ही रखता है । उसकी बुद्धि की गति और मन की अवस्था का कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता । कई बातें ऐसी होती है जिसका ज्ञान सेवक को भी नहीं होता क्योंकि यह सब कुछ सेवक के ठाकुर का किया हुआ होता है । सेवक की गति मिति स्व्म उसकी नहीं होती यह गति मिति उसके प्रभ की ही होती है ।
प्रभ के सेवक कउ को न पहूचै ॥
प्रभ के सेवक ऊच ते ऊचे ॥
प्रभ के सेवक का मुकाबला कोई नहीं कर सकता । उसकी ज्ञान चर्चा की अवस्था तक कोई दूसरा पहुँच नही सकता । प्रभ का सेवक ही वहाँ तक पहुँच सकता है ।
जिन्हे पुजारी, संत, ज्ञानवान माना जाये या जो मूर्खों के गुरु, अपने आप को प्रभु कहलवाने वाले हों या किसी को कोई कितना भी ऊँचा क्यों न समझता हो लेकिन प्रभ का सेवक उन सब से ऊँचा होता है ।
जो प्रभि अपनी सेवा लाइआ ॥
नानक सो सेवकु दह दिसि प्रगटाइआ ॥४॥
नानक कह रहे हैं कि जिस सेवक को प्रभ ने स्व्म अपनी सेवा में लगा लिया अर्थात जिसे प्रभ ज्ञान करवा दे, सच का ज्ञान करवा दे वह सेवक दसों दिशाओं में प्रकट हो जाता है ।

जप का अर्थ

गउड़ी सुखमनी 135
बारं बार बार प्रभु जपीऐ ॥
पी अम्रितु इहु मनु तनु ध्रपीऐ ॥
प्रभ को बार बार समझना चाहिए । प्रभ को समझने में भूल हो जाना स्वाभाविक है । इसलिए बार बार समझते रहना चाहिए । समझ में भूल होने की वजह से ही इतनी मतें बनी हैं । बड़े बड़े ज्ञानवान लोगों ने भूल करदी और अनगिनत मतें बना दी । सावधान होकर एक मन एक चित होकर ही प्रभ को समझना चाहिए । जाग्रत होकर समझना है । लोगों ने जप का अर्थ ही गलत ले लिया और माला जपना शुरू कर दिया जिसमे प्राप्ति कोई भी नहीं है ।
जो वस्तु हमें चाहिए वह ज्ञानेन्द्रों की पकड़ से परे हैं, मन-बुद्धि की पकड़ से परे है । इसलिए हर पल सावधानी से जपना आवश्यक है ।
बार बार जपकर ही अमृत प्राप्त होता और मन-तन से तृष्णा माया की अग्नि बुझ जाएगी । तृष्णा अमृत पीकर ही बुझती है अन्यथा तृष्णा बुझती ही नहीं है ।
नाम रतनु जिनि गुरमुखि पाइआ ॥
तिसु किछु अवरु नाही द्रिसटाइआ ॥
जिन गुरमुखों ने नाम रत्न पा लिया उन्हे नाम के अतिरिक्त और कुछ दिखाई ही नहीं देता । गुरमुखों को माया दिखाई ही नहीं देती । उन्हे केवल सच दिखाई देता है , झूठ दिखता ही नहीं । माया का झूठ का उन पर कोई असर नहीं होता । उन्हे केवल हरि ही दिखाई देता है और उन्हे हरि की ही इच्छा होती है । ना माया दिखती है न माया की इच्छा होती है ।
नामु धनु नामो रूपु रंगु ॥
नामो सुखु हरि नाम का संगु ॥
गुरमुख का धन केवल नाम-धन है दूसरे धन को वह धन नहीं समझता । उसके लिए रूप और रंग नाम ही होता है । उसका सुख नाम ही है । उसे नाम में सुख मिलता है । गुरमुख की संगति हमेशा नाम के साथ ही होती है । नाम के अतिरिक्त हुक्म के अतिरिक्त उसका संपर्क किसी से नहीं होता । उसे हुक्म ही दिखाई देता है । उसके लिए हुक्म के अलावा और कुछ नहीं है । हुक्म ने ही सब कुछ पैदा किया है हुक्म ही सब कुछ खत्म करेगा । गुरमुख केवल हुक्मनुसार चलते हैं । जब तक पूर्ण ब्रह्म की इच्छा है तब तक यह सृष्टि है । सृष्टी का अंत भी उसी की इच्छा से होगा । सब कुछ हुक्म अनुसार ही है । यह सारा खेल हुक्म का रचा हुआ है और अंत में सब हुक्म में ही समा जाएगा ।
नाम रसि जो जन त्रिपताने ॥
मन तन नामहि नामि समाने ॥
नाम रस से जो तृप्त हो गए अर्थात नाम से जुड़कर जिनकी माया की तृष्णा खत्म हो गयी , माया की इच्छा ही खत्म हो गयी उनका मन तन नाम में ही लीन हो जाता है । वे जीते जी हुक्म में लीन हो चुके होते हैं ।
ऊठत बैठत सोवत नाम ॥
कहु नानक जन कै सद काम ॥६॥
ऐसे जन उठते बैठे सोते हुए भी नाम से जुड़े रहते हैं । जो नाम से जुड़कर सोते हैं वह उठते भी नाम के साथ ही हैं । नानक कह रहे हैं कि वे जन सदा इसी में लगा रहता है । उसका बस यही काम होता है उसका कोई और काम नहीं होता ।

Thứ Tư, 4 tháng 2, 2015

सब भगवन के हाथ दे दो

सब भगवन के हाथ दे दो ,, एक ही तरीका है बस दुःख से छुटकारा पाने  का सब उस परमेहस्वर के हाथ में दे दो ,,हमें सच की प्राप्ति के लिए झूठ का तियाग करना ही पड़ता है ,और पहला जो ज्ञान हमारे पास है वो तो सब झूठ ही है ,,बस अपना काम लगन और महनत के साथ अपना काम हमें करता  रहना चाइये ,लाभ और हानि तो हमारे हाथ में नहीं है पर सच तो यही ,पर हम सब  मान ही सकते नहीं ,,,और यही तो असली बात है बस अपना काम करते रहो लगन के साथ और सब लाभ हानि उस परमेशवर के हाथ में छोड़ दो ,,,उसी को पता है  है की हमारी  क्या जरुरत है और सभी ककुश ही परमेश्वर की ही हाथ में है सब वही कर रहा है और जनम और मरण उसी की  हाथ में है ,,,,अपने आप  करता जब मान बैठते है तो सब अंदर से ही हमें इस बात का पता नहीं होता है की संसार की साडी कार तो प्रभु के ही  ही हाथ में है ,,,दुनिया में तो संसार का मोह ही हमारा हमारा नाश कर  देता है ,,,गीता में भी कृष्ण ने यही  कहा है की बस अपना काम करते जाओ फल  की ईशा मत करो फल तो प्रभु की हाथ में है बस हमारा काम तो करम करना ही है ,,,,,, प्रभु की लीला ही यही है जिसको समझना बहुत ही मुस्किल है यह तो वो प्रभु ही जनता है की इस का अर्थ क्या है ,,और वो इस संसार  किन किन रूपों में खेल रहा है वो तो उसी एक परमेश्वर  खेल है ,,,,,असल में माया को समज लेना एक ऐसा कठिन काम है जिसको समझना हमारे  बस की बात नहीं है ,,और इस समय हमें इस की तरफ जाना भी नहीं चाहिए क्योकि यही तो उस परमात्मा  यह संसार तो इतना विशाल है की इसकी खोज में समय की बर्बाद करने से अछा है हम उस एक प्रभु  का ज्ञान समझने में अपना धयान लगाये बाकि सब उस पर ही छोड़ देना ही पड़ेगा जिस की लिए हम कुश कर भी तो नहीं सकते है बस यही कर सकते है की उस परमेहस्वर की लीला होती हुए देख सकते है और यही एक हमारे हाथ में बी  है बाकि सब एक छलावा है नाशवंत संसार में

Chủ Nhật, 1 tháng 2, 2015

ब्रम्चारी होना एक पाखंड है

ब्रम्चारी होना एक पाखंड है ,हमने सभी ने ऐसा सुना है अपने देश की लोग और साधु ब्रम्चारी रहने पर बड़ा जोर देते ब्रम्चारी का अर्थ वो जो  लेते है की अपने आप को इस्त्री से दुर रखना और और सेक्स से बचना इस का अर्थ लिया जाता है पर क्या जे वाकया सम्भव है ,,,हम यह देखते है की इंसान की  सेक्स एक सरीरक जरुरत है इसको न तो दबाया जा सकता है और न ही किसी भी तरह से सेक्स को बिलकुल ही छोड़ा जा सकता है ,यह अपने अप्प में सम्भव  ही  नहीं है। अब मन का काम या वासना में लिप्त  होना एक अलग  है और शारीरक तोर पर सेक्स करना  एक क्रिया है जो हर एक  की जरुरत है। इस लिय एजिस तरह  साधु दावा करते है ऐसा  कुश भी होना सम्भव नहीं है और यह  अपने आपको मानसिक रोगी बनाना ही है और कुश भी नहीं है। और ज्ञान के मार्ग के ऐसा करने  आवश्यकता नहीं है  खुराक है और सरीर की खुराक बाहर है ,सरीर की जो जरुरत है वो  पर्कार से पूरी करनी ही पड़ती है उसको पूरी करे बिना यह रह ही नहीं सकता जैसे कोई आदमी कितनी देर तक जो पानी और खाना छोड़ सकता है आर एक दिन उसको भूख परेशान कर ही देती है। इस लिए ऐसे पाखंड से बहार आना चाहिए बल्कि अपने चरितर निरमन पर जोर देना चाइए।  ऐसे ही साधु है देश में  की लड़कीओ के साथ गलत काम करते है क्योकि उनको अपनी वाशना किसी न किसी तरह तो पूरी करनी ही पड़ेगी ,असल मन   को ज्ञान के द्वारा ही काबू में रखा जा सकता है जब तक यह ज्ञान की खोज करता रहता है  उतनी देर तक यह ज्ञान में ही लगा रहता है और जब इसको फ्री छोड़ दिया  जाता है उसी वक्त ही इसको कुश  न  नया ज्ञान चाइये ही जिसकी वजह से हमेशा रस मिलता रहे  जब ज्ञान से मन हट जाता है तो यह शारीरक रस पर अ  जाता है और वहाँ  आकर अपना ज्ञान लेने लगता है इस लिए मन को  हमेशा ही  ज्ञान में लिप्त करके रखना चाइए ही यही एक तरीका है  जिस कारन यह कभी भागता नहीं है

अघोरी दुनिया

अघोरी दुनिया एक  काली दुनिया का सच है जो हमारे ही भारत में एक बहत ही प्राचीन पंथ है और यह पंथ अघोरे पंथ के  नाम से प्रसिद्ध है ,पर क्या यह एक ऐसा रास्ता है ज इससे भगति तक पहुंचा जा सकता है कभी नहीं क्योकि आत्मा मार्ग ज्ञान का मार्ग है और केवल ज्ञान के मार्ग के द्वारा ही उस प्रभु को जाना और पाया जा सकता है और किसी रस्ते से नहीं ,यह ऐसे लोग है जो न सिर्फ़   में दाल रहे है बल्कि की ऐसा जीवन जी रहे है जिसका न तो कोई समाज को फाइदा है न ही  है ,पर हम तो इस पर  यही कह सकते है ऐसा करना ही गलत है और ऐसा जीवन भी भला किस काम को जिसमे कोई ज्ञान  भी न हो ,ऐसे लोग जो हरिद्वार के आस पास आप को मिल जाते है और वहा से यह कई तरह के ऐसे काम करते है जिस पर हमे ऐसा लगता है की  क्या यह भी कोई इंसानियत है ,जैसे नदी में से कोई लाश अति हो तो उस लाश को निकल कर खाना ही उसका मकसद होता है ,अब्ब भगति का लाश निकल कर खाने से क्या सरोकार यह तो एक बहुत ही बड़ा अप्राद है जिसको यह लोग करते है पर हमारे देश  की सरकार सोती है और यह सब काम होने दे रही है इस लिए यही भी एक सरकार की जिमेदारी है की इसको को अधिक से अधिक रोक जाये और हमारे समाज  को जागृत किया  जाये ,,,गुरबानी में सच का ज्ञान परगट है और भी कई ग्रन्थ है जिसमे सच का ज्ञान है ,,,लोगो को सच का मार्ग ही अपनाना चाहिय न की ऐसा मार्ग जिसमे कोई भी अंधकार में डूब कर अपनी पूरी लाइफ ही बर्बाद कर ले पर ऐसा कर पाना सभी लोगो की लिए मुमकिन नहीं है क्योकि लोगो की अंध शारदा इक लोगो पर  होती है और वो अनपढ़ अपितु पढ़े लिखे लोग  भी इन सब बो में फस जाते है ,यह पाखंडी जादू टोन के  नाम से लोग को ठगने का काम करते है और खूब दारू रात में पीते है और अपनी साडी जिंदगी इन्ही कामो में बिता देते है जिसका फल इसको हमेह्सा ही भुगतना होता है भुगतना होता है , बस यही वो  लोग है जिनमे से कई लोगो का कतल तक कर देते है ,

माया असल में है क्या

माया  असल में है क्या यह एक ऐसा सवाल है जो हमारे  एहमियत रखता है की असल में माया है क्या पर हम यह बात सोच रहे है की माया इस दृषटान्मां संसार को ही कहते है ,,,,जो कुश भी हमें दिखाई देता है वह ही असल में माया है। माया  बहुत  तरह  की है इसमें कई तरह के बात है.माया की कई रूप है ज्सिमे पूरी सृषिट में माया खेल रही है और इसमें ही यही सृष्टि नहीं बल्कि और भी सृष्टिआ अनेक तरह की माया में बानी हुए है ,जिसमे असंख जीव रहते है और वह पर निवास करते है और यह जीव ही आपस में लड़ते रहते है और कभी कभी तो ऐसा चाकर पड़ जाता है की आसानी से माया  ईचा ही  छोड़ती है ,इसी कलरन  हमारी असलिओ दुश्मन है इसने हमे एक ऐसे मोड़ पर ल कर  खड़ा किया  ह उअ है