संसार में जब से जीव आया है बस इसी सोच में लगा रहता है की संसार में आने का कारन क्या है यदीपी इस बात की पुषिट कई धार्मिक किताबो और संसार के महान ग्रन्थ करते ही रहते है की संसार में जीव के आने का लक्ष संसार में ज्ञान की प्राप्ति करना ही है पर वो कौन सा ज्ञान है जिस ज्ञान को प्राप्त करके हम इस भव सागर से शुट सकते है और जन्म मरण का जो चक्र में जीव फसा है वो भी दूर हो सकता है\ यह तो एक ऐसी पहेली है जो न तो कभी सुलजी है न कभी सुल्ज सकती है ,क्योकि सब जीवो के अपने अपने धर्म धर्म पर विशवास है और अपना अपना सबका एक सोच बना हुआ होता है जिस पर वो चल रहा है ,मगर फिर भी हम सभी में धर्म की कोई न कोई रूचि रहती ही है चाहे वो कभी कभी ही पैदा होती है जब हम संसार के जाल से उूब जाते है जा संसारी रिश्ते नाते हमे यहाँ मजबूर कर देते है और कभी कभी दुःख देने लगते है तब ही हम धर्म की रूचि पैदा कर लेते है-
पर यह सदा की लिए नहीं होती है उस के बाद यह रूचि कभी कभी माया में बदल जाती है ,हमारा मन कभी माया में कभी धर्म में ही फसा रहता है ,,यही सोच इस जीव की है की हम यहाँ पर आये क्यों है और हमारा जनम यहाँ पर क्यों हुआ है अगर जनम हुआ है तो आगे कहा जाना है यही तो एक ऐसा सवाल है जिसका हॉल हम सभी खोजने में लग्गे रहते है पर जीव कोई ही इस में तत्पर हो कर पूरी खोज करने के लिए उतरता है ,,यही संसार का अर्थ भी है संसार यहाँ पर संशय हो हमेशा भरम पड़ा रहे ,,,,हम देखते है की मानव हमारे सामने जनम लेते है और फिर उसके मरते जा रहे है और हम सभी को यह भी पता ह ऐ की एक दिन यही हाल हमारा भी होने वाला है और इस बात से इतना अनजान बने हुए है की कुश पता ही नहीं है की हम क्या कर रहे है ,असल में जीव माया में आया तो ज्ञान प्रपात करने को है जो इसको वेद शास्त्र गुरबानी और भी धार्मिक ग्रन्थ है जिसमे से मिल सकता है मगर माया का चक्र ही ऐसा है की इससे निकलना बहुत ही मुस्किल भरा काम है और ऐसा काम जो की मनुष्य को खुद ही करा पड़ता है कोई बहार से आकर यह काम नहीं कर सकता है जिस इस जीव को कोई और आकर इस की माया को दूर करदे, पर यह भी बात है की इस माया को दूर भी कौन करना चाहता है माया के तो सब गुलाम है ऐसा नहीं है की जो अमीर होता है वही मायाधारी है नहीं ऐसा तो अगर हम सभी में ईशा माया की है तो जरूर हम सभी मायाधारी है चाहे हमारे पास कितनी भी माया हो जा न हो हम सभी ही माया धरी है पर आम तो पर जो सन्यासी है उसको ही माया धरी कहा जाता है ,,बाकि दुनिआ को धरम की गूड बातो से कुश भी लेना देना नहीं होता है यह तो ऐसी बात है की वो लोग ऐसे ही सब बी बातो में पद कर अपना जनम बर्बाद कर रहे है ,जीव अपनी ही ईशा से माया में फसा हुआ है हमारा मन अपनी मर्जी ही परमेश्वर की हुकम की खिलाफ चलता है और मन अपनी मर्जी से ही उसके हुकम से अलग होता है ,,यही जीव के माया में फेज होने का कारन है जब तक यह जीव उस परमेश्वर के हुकम के अधीन नहीं हो जाता तब तक इसी ज्ञान के प्राप्ति के लिए भी इसी को अगला जनम हुआ है यह अगला जनम होना कोई सजा नहीं है बल्कि ज्ञान को पूरा करने के लिए हमे यह जनम मिला हुआ है ,,,अब जनम की प्हलाकि संसार में मारना तो कोई बी ही नहीं च रहा है पर संसार में मारना भी दो पर्कार है एक तो सररक तोर पर मारना है जिसको संसार मारना समज रहा है और दूसरा मरना वो है जिसको मन का मर जाना कहते है क्योकि ज अब तक मन नहीं मर जाता है इस संसार में सुखी होना सम्बह्व ही नहीं है ,यही इस जीव की छह भी है की हमेशा ही सुखी रहे और इसी सुख के कारन हम सभी यहाँ पर जो कुश कर रहे है वो सभी सुख के कारन ही कर रहे है और कोई मकसद ही नहीं है हमर जो भी हम काम करते है उस में केवल सुख ही चाहते है ,भला कोई ऐसा भी वियक्ति है जो यह उसकी चाहत है की में ऐसा कोई काम करू जिससे मुझे दुःख महसूस हो नहीं ऐसा तो कोई भी नहीं मांग रहा है ,,जीव के चेतना ही सुख सरूप है जो हमेशा ही सुख में रहना चाह रही है पर यह सुख संसार में तो इसको कही पर दिखयी नहीं पड़ता जिसको भी देखो हमेशा ही दुखी ही दिखाई दे रहा है इस पर कोई भी शंका किसी को भी नहीं है की ,,,बस अब यही बात ज्ञान की अहमियत को संजना होगा और ज्ञान को मान कर ही हम सभी यहाँ से भव सागर से तर सकते है हमेशा के लिए रर्ति यही है की इस जनम में हम उस प्रभु का नाम अर्थात उस के ज्ञान को समज कर ही इस दुनिया से छुटकारा पा सकते है वरना और कोई भी इस का न तो कोई तरीका है न और किसी भी तरह की समाधी और किसी करम कांड से यह मन काबू में अ सकता है अगर यह मन काबू में अ सकता है तो केवल यही इस का मकसद है की हमेशा ही ज्ञान में डूबा रहे क्योकि जब तक ज्ञान में डूबा रहेगा इस को औरु कोई कल्पना करने का मौका ही नहीं मिलेगा ,इस लिए सरबप्रथम ज्ञान ही है जिस के कारन हम अपनी यह चीज को यानि इस आत्मा को जनम मरण के बंधन से आजाद कर सकते है वरना तो जनम मरण तो चल ही रहा है और चलता ही रहेगा और हमेशा ही हम इस नरक में पड़े रहेंगे ,,,यही तो नरक है और कौनसा नरक अपने देखा है य्र जाकर हस्पताल में तो देख लीजे वह पर आपको नरक के ही दर्शन हो सकते है सब दुनिआ में सब लोग तो दुखी ही नहीं वरना सुख तो कभी कभार ही हासिल होता है साडी जिनगी तो सुख के पिशे भाग जाने में ही लग्गी रहती है हलाकि संसार में मारना तो कोई बी ही नहीं च रहा है पर संसार में मारना भी दो पर्कार है एक तो सररक तोर पर मारना है जिसको संसार मारना समज रहा है और दूसरा मरना वो है जिसको मन का मर जाना कहते है क्योकि ज अब तक मन नहीं मर जाता है इस संसार में सुखी होना सम्बह्व ही नहीं है ,यही इस जीव की छह भी है की हमेशा ही सुखी रहे और इसी सुख के कारन हम सभी यहाँ पर जो कुश कर रहे है वो सभी सुख के कारन ही कर रहे है और कोई मकसद ही नहीं है हमर जो भी हम काम करते है उस में केवल सुख ही चाहते है ,भला कोई ऐसा भी वियक्ति है जो यह उसकी चाहत है की में ऐसा कोई काम करू जिससे मुझे दुःख महसूस हो नहीं ऐसा तो कोई भी नहीं मांग रहा है ,,जीव के चेतना ही सुख सरूप है जो हमेशा ही सुख में रहना चाह रही है पर यह सुख संसार में तो इसको कही पर दिखयी नहीं पड़ता जिसको भी देखो हमेशा ही दुखी ही दिखाई दे रहा है इस पर कोई भी शंका किसी को भी नहीं है की ,,,बस अब यही बात ज्ञान की अहमियत को संजना होगा और ज्ञान को मान कर ही हम सभी यहाँ से भव सागर से तर सकते है हमेशा के लिए
पर यह सदा की लिए नहीं होती है उस के बाद यह रूचि कभी कभी माया में बदल जाती है ,हमारा मन कभी माया में कभी धर्म में ही फसा रहता है ,,यही सोच इस जीव की है की हम यहाँ पर आये क्यों है और हमारा जनम यहाँ पर क्यों हुआ है अगर जनम हुआ है तो आगे कहा जाना है यही तो एक ऐसा सवाल है जिसका हॉल हम सभी खोजने में लग्गे रहते है पर जीव कोई ही इस में तत्पर हो कर पूरी खोज करने के लिए उतरता है ,,यही संसार का अर्थ भी है संसार यहाँ पर संशय हो हमेशा भरम पड़ा रहे ,,,,हम देखते है की मानव हमारे सामने जनम लेते है और फिर उसके मरते जा रहे है और हम सभी को यह भी पता ह ऐ की एक दिन यही हाल हमारा भी होने वाला है और इस बात से इतना अनजान बने हुए है की कुश पता ही नहीं है की हम क्या कर रहे है ,असल में जीव माया में आया तो ज्ञान प्रपात करने को है जो इसको वेद शास्त्र गुरबानी और भी धार्मिक ग्रन्थ है जिसमे से मिल सकता है मगर माया का चक्र ही ऐसा है की इससे निकलना बहुत ही मुस्किल भरा काम है और ऐसा काम जो की मनुष्य को खुद ही करा पड़ता है कोई बहार से आकर यह काम नहीं कर सकता है जिस इस जीव को कोई और आकर इस की माया को दूर करदे, पर यह भी बात है की इस माया को दूर भी कौन करना चाहता है माया के तो सब गुलाम है ऐसा नहीं है की जो अमीर होता है वही मायाधारी है नहीं ऐसा तो अगर हम सभी में ईशा माया की है तो जरूर हम सभी मायाधारी है चाहे हमारे पास कितनी भी माया हो जा न हो हम सभी ही माया धरी है पर आम तो पर जो सन्यासी है उसको ही माया धरी कहा जाता है ,,बाकि दुनिआ को धरम की गूड बातो से कुश भी लेना देना नहीं होता है यह तो ऐसी बात है की वो लोग ऐसे ही सब बी बातो में पद कर अपना जनम बर्बाद कर रहे है ,जीव अपनी ही ईशा से माया में फसा हुआ है हमारा मन अपनी मर्जी ही परमेश्वर की हुकम की खिलाफ चलता है और मन अपनी मर्जी से ही उसके हुकम से अलग होता है ,,यही जीव के माया में फेज होने का कारन है जब तक यह जीव उस परमेश्वर के हुकम के अधीन नहीं हो जाता तब तक इसी ज्ञान के प्राप्ति के लिए भी इसी को अगला जनम हुआ है यह अगला जनम होना कोई सजा नहीं है बल्कि ज्ञान को पूरा करने के लिए हमे यह जनम मिला हुआ है ,,,अब जनम की प्हलाकि संसार में मारना तो कोई बी ही नहीं च रहा है पर संसार में मारना भी दो पर्कार है एक तो सररक तोर पर मारना है जिसको संसार मारना समज रहा है और दूसरा मरना वो है जिसको मन का मर जाना कहते है क्योकि ज अब तक मन नहीं मर जाता है इस संसार में सुखी होना सम्बह्व ही नहीं है ,यही इस जीव की छह भी है की हमेशा ही सुखी रहे और इसी सुख के कारन हम सभी यहाँ पर जो कुश कर रहे है वो सभी सुख के कारन ही कर रहे है और कोई मकसद ही नहीं है हमर जो भी हम काम करते है उस में केवल सुख ही चाहते है ,भला कोई ऐसा भी वियक्ति है जो यह उसकी चाहत है की में ऐसा कोई काम करू जिससे मुझे दुःख महसूस हो नहीं ऐसा तो कोई भी नहीं मांग रहा है ,,जीव के चेतना ही सुख सरूप है जो हमेशा ही सुख में रहना चाह रही है पर यह सुख संसार में तो इसको कही पर दिखयी नहीं पड़ता जिसको भी देखो हमेशा ही दुखी ही दिखाई दे रहा है इस पर कोई भी शंका किसी को भी नहीं है की ,,,बस अब यही बात ज्ञान की अहमियत को संजना होगा और ज्ञान को मान कर ही हम सभी यहाँ से भव सागर से तर सकते है हमेशा के लिए रर्ति यही है की इस जनम में हम उस प्रभु का नाम अर्थात उस के ज्ञान को समज कर ही इस दुनिया से छुटकारा पा सकते है वरना और कोई भी इस का न तो कोई तरीका है न और किसी भी तरह की समाधी और किसी करम कांड से यह मन काबू में अ सकता है अगर यह मन काबू में अ सकता है तो केवल यही इस का मकसद है की हमेशा ही ज्ञान में डूबा रहे क्योकि जब तक ज्ञान में डूबा रहेगा इस को औरु कोई कल्पना करने का मौका ही नहीं मिलेगा ,इस लिए सरबप्रथम ज्ञान ही है जिस के कारन हम अपनी यह चीज को यानि इस आत्मा को जनम मरण के बंधन से आजाद कर सकते है वरना तो जनम मरण तो चल ही रहा है और चलता ही रहेगा और हमेशा ही हम इस नरक में पड़े रहेंगे ,,,यही तो नरक है और कौनसा नरक अपने देखा है य्र जाकर हस्पताल में तो देख लीजे वह पर आपको नरक के ही दर्शन हो सकते है सब दुनिआ में सब लोग तो दुखी ही नहीं वरना सुख तो कभी कभार ही हासिल होता है साडी जिनगी तो सुख के पिशे भाग जाने में ही लग्गी रहती है हलाकि संसार में मारना तो कोई बी ही नहीं च रहा है पर संसार में मारना भी दो पर्कार है एक तो सररक तोर पर मारना है जिसको संसार मारना समज रहा है और दूसरा मरना वो है जिसको मन का मर जाना कहते है क्योकि ज अब तक मन नहीं मर जाता है इस संसार में सुखी होना सम्बह्व ही नहीं है ,यही इस जीव की छह भी है की हमेशा ही सुखी रहे और इसी सुख के कारन हम सभी यहाँ पर जो कुश कर रहे है वो सभी सुख के कारन ही कर रहे है और कोई मकसद ही नहीं है हमर जो भी हम काम करते है उस में केवल सुख ही चाहते है ,भला कोई ऐसा भी वियक्ति है जो यह उसकी चाहत है की में ऐसा कोई काम करू जिससे मुझे दुःख महसूस हो नहीं ऐसा तो कोई भी नहीं मांग रहा है ,,जीव के चेतना ही सुख सरूप है जो हमेशा ही सुख में रहना चाह रही है पर यह सुख संसार में तो इसको कही पर दिखयी नहीं पड़ता जिसको भी देखो हमेशा ही दुखी ही दिखाई दे रहा है इस पर कोई भी शंका किसी को भी नहीं है की ,,,बस अब यही बात ज्ञान की अहमियत को संजना होगा और ज्ञान को मान कर ही हम सभी यहाँ से भव सागर से तर सकते है हमेशा के लिए
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