Thứ Sáu, 15 tháng 5, 2015

गउड़ी सुखमनी 158 साजन संत करहु इहु कामु ॥ आन तिआगि जपहु हरि नामु ॥

हे साजन संत बाकी सब कुछ त्याग कर केवल हरि नाम ही जपो । गुरबानी में हरि नाम समाया हुआ है, इसे समझो ।
सिमरि सिमरि सिमरि सुख पावहु ॥
आपि जपहु अवरह नामु जपावहु ॥
सिमरन करते रहो, सिमरन करते करते सब कुछ याद आ जायेगा कि क्यों हम यहाँ आये हैं, कहाँ से आयें है । सारी राजा राम की कहानी याद आ जायेगी जो अभी भूली हुई है । जैसे जैसे याद आती जायेगी वैसे वैसे सुख होता जायेगा ।
स्वम् भी जपो और दूसरों को भी नाम जपाओ । भक्त स्वम् भी यही करते थे स्वम् जपते थे और दूसरों को जपाते थे ।
भगति भाइ तरीऐ संसारु ॥
बिनु भगती तनु होसी छारु ॥
यदि अंदर भक्ति की भूख हो तभी संसार को तरा जा सकता है । गुरमत लेना ही भक्ति है । गुरबानी को समझना ही भक्ति है । यदि यह भूख लगी रहे तो संसार सागर को तरा जा सकता है । गुरबानी की समझ जैसे जैसे आती जाती है वैसे वैसे भव-सागर छूटता चला जाता है । गुरबानी की समझ द्वारा भव सागर पार हो जाता है । अज्ञानता ही भव–सागर में डूबा देती है । जो भक्ति के बिना हैं उनका तन राख हो जाता है । भक्ति करने वाले तो स्वम् ही शरीर को छोड़ देते हैं । भक्ति करो चाहे ना करो इस तन ने तो राख होना ही है ।
सरब कलिआण सूख निधि नामु ॥
बूडत जात पाए बिस्रामु ॥
नाम हर पक्ष से हर रूप से कल्याणकारी है, सुख निधान है । आदमी जितना माया में जाता है उतना ही डूबता जाता है । जितनी चिंता बढ़ती है उतना ही आदमी डूबता जाता है । यदि डूबता डूबता रुक जाए तो यह उभर भी जाता है । जिस दिन उसे ज्ञान हो गया कि असल में चिंता किस तरफ जाने से कम होती है उस दिन यह रुक जाता है । आदमी अज्ञानता वश यह समझता है कि चिंता माय से कम होगी । आदमी को भ्रम है कि संसारी पदार्थों की प्राप्ति द्वारा उसकी चिंता मिट जायेगी ।
सगल दूख का होवत नासु ॥
नानक नामु जपहु गुनतासु ॥५॥
नाम द्वारा ही सभी दुखो का नाश हो जाता है । नानक कह रहे हैं कि उसके गुणों को जान लेना ही नाम जपना है , गुणों को धारण करना ही नाम जपना है । जिन गुणों की समझ आ जाये वह गुण आ जाते हैं ।

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